फ़िदा-ए-मंज़िल-ए-बे-जादा हैं ख़ुदा रक्खे
ख़राब-ए-साग़र-ए-बे-बादा हैं ख़ुदा रक्खे
हमारी हुस्न-परस्ती भी ख़ूब शय है कि हम
हसीं ग़मों के भी दिल-दादा हैं ख़ुदा रक्खे
Ahmad Faraz
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किस क़यामत के लम्हे थे 'अख़्तर'
हयात इंसाँ की सर ता पा ज़बाँ मालूम होती है
फुवार, अब्र, परिंदों के गीत, मस्त हवा
शबाब-ए-दर्द मिरी ज़िंदगी की सुब्ह सही
शोले भड़काओ देखते क्या हो
आफ़ात-ओ-हवादिस से भरी है दुनिया
दिल को बर्बाद किए जाती है
ये हसीन फ़ितरत के हुस्न का अनीला-पन
क्या ख़ाक करम है जो मुझे तू बख़्शे
गुलशन-ए-आरज़ू की दीद के ब'अद
यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था
गोशा-ए-बाग़ की मुलाक़ातें