बातें करने में फूल झड़ते हैं
बर्क़ गिरती है मुस्कुराने में
नज़रें! जैसे फ़राख़-दिल साक़ी
ख़ुम लुंढाए शराब-ख़ाने में
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Habib Jalib
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Gulzar
Javed Akhtar
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
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बहुत से इशरत-ए-नौ-रोज़-ओ-ईद में हैं मगन
हो के बे-फ़िक्र तान उड़ाए जा
अपनी बहार पे हँसने वालो कितने चमन ख़ाशाक हुए
क़सम इन आँखों की जिन से लहू टपकता है
तब्अ इशरत-पसंद रखता हूँ
ये शीरीं राग मेरे हाफ़िज़े को जगमगाता है
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
ग़म-ए-हयात कहानी है क़िस्सा-ख़्वाँ हूँ मैं
हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
अब कहाँ हूँ कहाँ नहीं हूँ मैं
आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया
कुछ अपनी सताइश में मज़ा आता है