अब कहाँ हूँ कहाँ नहीं हूँ मैं
जिस जगह हूँ वहाँ नहीं हूँ मैं
कौन आवाज़ दे रहा है मुझे?
कोई कह दो यहाँ नहीं हूँ मैं
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Gulzar
Habib Jalib
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(4186) Peoples Rate This
साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं
हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें
सरशार हूँ छलकते हुए जाम की क़सम
मेरे रुख़ से सुकूँ टपकता है
शोले भड़काओ देखते क्या हो
सीना ख़ूँ से भरा हुआ मेरा
इधर दिमाग़ हैं साकित दिलों को सकता है
किसी से लड़ाएँ नज़र और झेलें मोहब्बत के ग़म इतनी फ़ुर्सत कहाँ
मौत की सी पुर-सुकूँ वीरानियाँ
जो दाग़ बन के तमन्ना तमाम हो जाए
दिल तो रोए मगर मैं गाए जाऊँ
आफ़तों में घिर गया हूँ ज़ीस्त से बे-ज़ार हूँ