आता नहीं साँसों में मज़ा पन्ने का
खिलता ही नहीं ज़ख़्म मिरे सीने का
हर रोज़ अगर एक रुबाई न कहूँ
होता नहीं हक़ जैसे अदा जीने का
Anwar Masood
Wasi Shah
Gulzar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Ahmad Faraz
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दिल को बर्बाद किए जाती है
क़सम इन आँखों की जिन से लहू टपकता है
फिरती हूँ लिए सोज़-ए-हयात आँखों में
हर तरफ़ एक बे-हिजाबी है
नींद आती है इस तरह शब को
माज़ी की रिवायात में गड़ जाते हैं
बातें करने में फूल झड़ते हैं
आसूदगी-ए-ज़ात नहीं हो सकती
वो बहर-ए-कर्ब-ओ-अलम का ख़ुलासा है यकसर
ये सनम रिवायत-ओ-नक़्ल के हुबल-ओ-मनात से कम नहीं
ख़्वाहिश-ए-ऐश नहीं दर्द-ए-निहानी की क़सम
तिरी नाज़ुक और लाँबी उँगलियाँ