आसूदगी-ए-ज़ात नहीं हो सकती
सैराबी-ए-जज़्बात नहीं हो सकती
जो इतनी तुनक-माया हो दुनिया उस में
मेरी गुज़र-औक़ात नहीं हो सकती
Wasi Shah
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Rahat Indori
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
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ये आरज़ुएँ ये जोश-ए-अलम ये सैल-ए-नशात
उन में रहती थी इक हँसी बन कर
फ़ज़ा उमडी हुई है इक छलकते जाम की मानिंद
है ग़म-ए-रोज़गार का मौज़ूअ
हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें
आता नहीं साँसों में मज़ा पीने का
बुत लाखों मोहब्बत में तराशे ऐसे
सीना ख़ूँ से भरा हुआ मेरा
जब से मुँह को लग गई 'अख़्तर' मोहब्बत की शराब
इस रुपहली शराब-ए-नूरीं से
सरशार हूँ छलकते हुए जाम की क़सम