याद-ए-माज़ी अज़ाब है या-रब
छीन ले मुझ से हाफ़िज़ा मेरा
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दूसरों का दर्द 'अख़्तर' मेरे दिल का दर्द है
मुतरिबा जब सदा-ए-साज़ के साथ
ख़िज़ाँ में आग लगाओ बहार के दिन हैं
लुत्फ़ ले ले के पिए हैं क़दह-ए-ग़म क्या क्या
पानी ले सकते हैं दरिया से मगर कूज़े में हम
दिल तो रोए मगर मैं गाए जाऊँ
गुलशन-ए-आरज़ू की दीद के ब'अद
कोई रोए तो मैं बे-वजह ख़ुद भी रोने लगता हूँ
इक तीर कलेजे में पिरोया हम ने
तस्कीन-ए-ग़म-ए-दिल के लिए जीता हूँ
किस क़यामत के लम्हे थे 'अख़्तर'
हर तरफ़ एक बे-हिजाबी है