सुनने वाले फ़साना तेरा है
सिर्फ़ तर्ज़-ए-बयाँ ही मेरा है
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गोशा-ए-बाग़ और बज़्म-ए-तरब
आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया
फ़ज़ा उमडी हुई है इक छलकते जाम की मानिंद
हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
दिल के अरमान दिल को छोड़ गए
चीर कर सीने को रख दे गर न पाए ग़म-गुसार
वो यास कि उम्मीद कि चश्मे फूटें
मुतरिब-ए-दिल की वो तानें क्या हुईं
क्या ख़बर थी इक बला-ए-ना-गहानी आएगी
तस्कीन-ए-ग़म-ए-दिल के लिए जीता हूँ
सुब्ह की तनवीर बन कर आई वो नाज़ुक-ख़िराम
हमेशा जागते ही जागते सहर कर दी