कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं
मैं ख़्वाब देख रहा हूँ मुझे जगाओ नहीं
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Anwar Masood
Rahat Indori
Parveen Shakir
Gulzar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(723) Peoples Rate This
माज़ी की रिवायात में गड़ जाते हैं
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता
पढ़ा है मैं ने फ़सानों में जिस तरह 'अख़्तर'
इस हाथ से जो कुछ मैं लिया करता हूँ
गोशा-ए-बाग़ की मुलाक़ातें
तस्कीन-ए-ग़म-ए-दिल के लिए जीता हूँ
इस मईशत के साए में हमदम
तक़दीर-ए-अज़ल आह तो भरती होगी
वो बहर-ए-कर्ब-ओ-अलम का ख़ुलासा है यकसर
दिल-ए-हसरत-ज़दा में एक शोला सा भड़कता है
सच तो ये है जहाँ में मेरे ब'अद
क्या ख़बर थी इक बला-ए-ना-गहानी आएगी