हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
अब तक आँखों से ख़ूँ टपकता है
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इधर दिमाग़ हैं साकित दिलों को सकता है
हमेशा जागते ही जागते सहर कर दी
कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं
है ग़म-ए-रोज़गार का मौज़ूअ
सुनने वाले फ़साना तेरा है
तैरे गीतों की लय अरे तौबा
इक टीस कलेजे को मसलती ही रही
जा रहा था मैं सर झुकाए हुए
मोहब्बत! ऐ कि तू देवी है ग़म की रोए जा
एक सब्र-आज़मा जुदाई है
गोशा-ए-बाग़ की मुलाक़ातें
तमाम उम्र मैं आँसू बहाऊँगा 'अख़्तर'