ऐ सोज़-ए-जाँ-गुदाज़ अभी मैं जवान हूँ
ऐ दर्द-ए-ला-इलाज ये उम्र-ए-शबाब है
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मिरी ख़बर तो किसी को नहीं मगर 'अख़्तर'
जो हो न सका हम से वो कर जाओ तुम
इधर दिमाग़ हैं साकित दिलों को सकता है
है ग़म-ए-रोज़गार का मौज़ूअ
सीना ख़ूँ से भरा हुआ मेरा
बुत लाखों मोहब्बत में तराशे ऐसे
इस तरह तबीअत कभी शैदा न हुई
हल्की हल्की फुवार के दौरान में
जब से मुँह को लग गई 'अख़्तर' मोहब्बत की शराब
पिहना-ए-आसमाँ पे हैं तारी उदासियाँ
झूमती है फ़ज़ा-ए-दश्त-ओ-जबल
मोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों में