आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया
सहते सहते हम को आख़िर रंज सहना आ गया
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मुतरिबा जब सदा-ए-साज़ के साथ
तक़दीर-ए-अज़ल आह तो भरती होगी
चीर कर सीने को रख दे गर न पाए ग़म-गुसार
हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें
तमाम उम्र मैं आँसू बहाऊँगा 'अख़्तर'
तिरा आसमाँ नावकों का ख़ज़ीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना
ये हसीन फ़ितरत के हुस्न का अनीला-पन
सोते में कोई आह भरी तो होगी
गुलशन-ए-आरज़ू की दीद के ब'अद
मौत की सी पुर-सुकूँ वीरानियाँ
दिल-ए-हसरत-ज़दा में एक शोला सा भड़कता है
ये बोसीदा फटी गुदड़ी ये सूराख़ों भरी कमली