ज़बान बंद रही दिल का मुद्दआ' न कहा
ज़बान बंद रही दिल का मुद्दआ' न कहा
मगर निगाह ने उस अंजुमन में क्या न कहा
मुहीत-ए-शौक़ में हम डूबते उभरते रहे
ख़ुदा गवाह कभी जौर-ए-ना-ख़ुदा न कहा
सनम-कदा है कि इक महफ़िल-ए-ख़ुदा-वनदाँ
बहुत ख़फ़ा हुआ वो बुत जिसे ख़ुदा न कहा
हज़ार ख़िज़्र-नुमा लोग रास्तों में मिले
हमारे दिल ने किसी को भी रहनुमा न कहा
ये काएनात तो है ख़ैर मुझ से बेगाना
अगर निगाह ने तेरी भी आश्ना न कहा
(781) Peoples Rate This