यूँ बदलती है कहीं बर्क़-ओ-शरर की सूरत
यूँ बदलती है कहीं बर्क़-ओ-शरर की सूरत
क़ाबिल-ए-दीद हुई है गुल-ए-तर की सूरत
ज़ुल्फ़ की आड़ में थी जान-ए-नज़र की सूरत
रात गुज़री तो नज़र आई सहर की सूरत
उन के लब पर है तबस्सुम मिरी आँखों में सुरूर
क्या दिखाई है दुआओं ने असर की सूरत
क़ाफ़िले वालो नए क़ाफ़िला-सालार आए
अब बदल जाएगी अंदाज़-ए-सफ़र की सूरत
क्या करिश्मा है मिरे जज़्बा-ए-आज़ादी का
थी जो दीवार कभी अब है वो दर की सूरत
अब कोई हौसला-अफ़ज़ा-ए-हुनर है 'अख़्तर'
अब नज़र आएगी अर्बाब-ए-हुनर की सूरत
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