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शराब आए तो कैफ़-ओ-असर की बात करो - अख़्तर अंसारी अकबराबादी कविता - Darsaal

शराब आए तो कैफ़-ओ-असर की बात करो

शराब आए तो कैफ़-ओ-असर की बात करो

पियो तो बज़्म में फ़िक्र-ओ-नज़र की बात करो

फ़साना-ए-ख़म-ए-गेसू में कैफ़ कुछ भी नहीं

निज़ाम-ए-आलम-ए-ज़ेर-ओ-ज़बर की बात करो

चमन में दाम बिछाता है वक़्त का सय्याद

गुलों से हौसला-ए-बाल-ओ-पर की बात करो

क़बा-ए-ज़ोहद की पाकीज़गी तो देख चुके

शराब-ख़ाने में दामान-ए-तर की बात करो

कहानियाँ शब-ए-हिज्राँ की हो चुकी हैं तमाम

सहर तुलूअ' हुई है सहर की बात करो

चमन चमन में उधर हो रही है हद-बंदी

खुली फ़ज़ाएँ जिधर हैं उधर की बात करो

गुलों का ज़िक्र बहारों में कर चुके 'अख़्तर'

अब आओ होश में बर्क़-ओ-शरर की बात करो

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