रहने दे ये तंज़ के नश्तर अहल-ए-जुनूँ बेबाक नहीं

रहने दे ये तंज़ के नश्तर अहल-ए-जुनूँ बेबाक नहीं

कौन है अपने होश में ज़ालिम किस का गरेबाँ चाक नहीं

जब था ज़माना दीवानों का अब फ़रज़ाने आए हैं

जब सहरा में लाला-ओ-गुल थे अब गुलशन में ख़ाक नहीं

फ़ित्नों की अर्ज़ानी से अब एक इक तार आलूदा है

हम देखें किस किस के दामन एक भी दामन पाक नहीं

मौज-ए-तलातुम ख़ैर हैं हम साहिल के क़रीब आते ही नहीं

वक़्त की रौ में बह जाएँ हम ऐसे ख़स-ओ-ख़ाशाक नहीं

दर्द-ओ-कर्ब से हश्र बपा होंटों पे तबस्सुम है 'अख़्तर'

दिल का आलम कुछ भी रहे आँखें तो मगर नमनाक नहीं

(753) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Rahne De Ye Tanz Ke Nashtar Ahl-e-junun Bebak Nahin In Hindi By Famous Poet Akhtar Ansari Akbarabadi. Rahne De Ye Tanz Ke Nashtar Ahl-e-junun Bebak Nahin is written by Akhtar Ansari Akbarabadi. Complete Poem Rahne De Ye Tanz Ke Nashtar Ahl-e-junun Bebak Nahin in Hindi by Akhtar Ansari Akbarabadi. Download free Rahne De Ye Tanz Ke Nashtar Ahl-e-junun Bebak Nahin Poem for Youth in PDF. Rahne De Ye Tanz Ke Nashtar Ahl-e-junun Bebak Nahin is a Poem on Inspiration for young students. Share Rahne De Ye Tanz Ke Nashtar Ahl-e-junun Bebak Nahin with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.