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लुटाओ जान तो बनती है बात किस ने कहा - अख़्तर अंसारी अकबराबादी कविता - Darsaal

लुटाओ जान तो बनती है बात किस ने कहा

लुटाओ जान तो बनती है बात किस ने कहा

ये बज़्म-ए-इश्क़ में राज़-ए-हयात किस ने कहा

रह-ए-तलब में सुनाता कोई तराना-ए-नौ

यहाँ फ़साना-ए-ज़ात-ओ-सिफ़ात किस ने कहा

अभी सवाबित-ओ-सय्यार में है फ़स्ल बहुत

सिमट चुकी है बहुत काएनात किस ने कहा

हर इक चोट पे खुलती है आँख इंसाँ की

हैं ख़िज़्र-ए-राह-ए-तलब हादसात किस ने कहा

हम आसमाँ को ज़मीं पर उतार लाए मगर

अभी नहीं है शुऊर-ए-हयात किस ने कहा

हम अपनी धुन में हैं मसरूफ़ किस तरफ़ देखें

हमें नहीं है ग़म-ए-इल्तिफ़ात किस ने कहा

हमें सुकून मयस्सर नहीं मगर 'अख़्तर'

हमारे दौर को दौर-ए-नजात किस ने कहा

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