आतिश-ए-इश्क़ भड़क उट्ठी है पैमाने मैं
कौन सी आग लगी दिल में ये अनजाने में
ये तिरी शीरीं-लबी शोला-ए-आतिश बन कर
अब समाअ'त से चली दल के निहाँ-ख़ाने में
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शब-ए-ज़ुल्मत
जला के दिल को रखा सुब्ह-ओ-शाम रोज़-ओ-शब
लगा के आग बुझाने की बात करते हो
हर तरफ़ जब से देखा ख़ला ही ख़ला
सुरूर
तिरी आश्नाई से तेरी रज़ा तक
ये ग़ाज़ा है काजल है उबटन है क्या है
महबूबा और मौत
में महफ़िल-ए-हयात में हैरान सा रहा
हम आज बज़्म-ए-रक़ीबाँ से सुर्ख़-रू आए
ये तिरे लम्स का एहसास जवाँ-तर हो जाए