वो और होंगे जो कार-ए-हवस पे ज़िंदा हैं
मैं उस की धूप से साया बदल के आया हूँ
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तिरे ग़ुरूर की इस्मत-दरी पे नादिम हूँ
ख़ुद से निकलूँ भी तो रस्ता नहीं आसान मिरा
अब तुझे मेरा नाम याद नहीं
रह जाएगी ये सारी कहानी यहीं धरी
मैं किसी और ही आलम का मकीं हूँ प्यारे
नींद में गुनगुना रहा हूँ मैं
उस ख़ुश-अदा के आइना-ख़ाने में जाऊँगा
ये सारे फूल ये पत्थर उसी से मिलते हैं
जिस के बग़ैर जी नहीं सकते थे जा चुका
ये गुल जिस ख़ाक से लाया गया है
अब भी अक्सर ध्यान तुम्हारा आता है