रह जाएगी ये सारी कहानी यहीं धरी
इक रोज़ जब मैं अपने फ़साने में जाऊँगा
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मैं किसी और ही आलम का मकीं हूँ प्यारे
उजाला है जो ये कौन-ओ-मकाँ में
उस ख़ुश-अदा के आइना-ख़ाने में जाऊँगा
वो और होंगे जो कार-ए-हवस पे ज़िंदा हैं
नींद में गुनगुना रहा हूँ मैं
अब तुझे मेरा नाम याद नहीं
है मुसीबत में गिरफ़्तार मुसीबत मेरी
ये सारे फूल ये पत्थर उसी से मिलते हैं
अब भी अक्सर ध्यान तुम्हारा आता है
ऐसा एक मक़ाम हो जिस में दिल जैसी वीरानी हो
ये गुल जिस ख़ाक से लाया गया है