अब तुझे मेरा नाम याद नहीं
जब कि तेरा पता रहा हूँ मैं
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ये जो इक शाख़ है हरी थी अभी
ये सारी धूल मिरी है ये सब ग़ुबार मिरा
उस ख़ुश-अदा के आइना-ख़ाने में जाऊँगा
ये गुल जिस ख़ाक से लाया गया है
मैं किसी और ही आलम का मकीं हूँ प्यारे
ख़्वाब आराम नहीं ख़्वाब परेशानी है
ऐसा एक मक़ाम हो जिस में दिल जैसी वीरानी हो
ये सारे फूल ये पत्थर उसी से मिलते हैं
सुन! हिज्र और विसाल का जादू कहाँ गया
नींद में गुनगुना रहा हूँ मैं
उजाला है जो ये कौन-ओ-मकाँ में
न अपना नाम न चेहरा बदल के आया हूँ