मंजधार में हूँ पास किनारा भी नहीं
बस में मिरे इस दर्द का चारा भी नहीं
दुनिया की रविश से ख़ुश नहीं हूँ लेकिन
दुनिया को बदल देने का यारा भी नहीं
Rahat Indori
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दिल दबा जाता है कितना आज ग़म के बार से
नफ़रत की हवा बन में चलाई किस ने
पहुँच के जो सर-ए-मंज़िल बिछड़ गया मुझ से
घुटन अज़ाब-ए-बदन की न मेरी जान में ला
फ़ित्ने अजब तरह के समन-ज़ार से उठे
आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है
दश्त-ए-अदम का सन्नाटा
जिन के नसीब में आब-ओ-दाना कम कम होता है
मुश्किल ही से कर लेती है दुनिया उसे क़ुबूल
रस्ते ही में हो जाती हैं बातें बस दो-चार
हिसार-अंदर-हिसार
जाना-पहचाना अजनबी