किस नहज से हम ने इक कहानी कह दी
दो बातों में बात दिल की सारी कह दी
लफ़्ज़ों की किफ़ायत भी हुनर है 'अकबर'
जब कह न सके ग़ज़ल रुबाई कह दी
Javed Akhtar
Gulzar
Habib Jalib
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Faiz Ahmad Faiz
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Anwar Masood
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शो'ले हैं कहीं तेज़ कहीं हैं मद्धम
हर शय ब हर अंदाज़ अलग होती है
नए ख़ौफ़ का आज़ार
मुसाफ़िरत का वलवला सियाहतों का मश्ग़ला
कुल आलम-ए-वुजूद कि इक दश्त-ए-नूर था
मुबहम थे सब नुक़ूश नक़ाबों की धुँद में
अजल सराए तीरगी
दुनिया कभी हो सकी न हमराज़ मिरी
आँखों को देखने का सलीक़ा जब आ गया
बे-साल-ओ-सिन ज़मानों में फैले हुए हैं हम
कब फ़िक्र-ओ-ख़याल का असासा कम है
छोड़ के माल-ओ-दौलत सारी दुनिया में अपनी