रस्ते ही में हो जाती हैं बातें बस दो-चार
अब तो उन के घर भी जाना कम कम होता है
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(815) Peoples Rate This
जब सुब्ह की दहलीज़ पे बाज़ार लगेगा
नए ख़ौफ़ का आज़ार
चराग़-ए-राहगुज़र लाख ताबनाक सही
ख़ुद-परस्ती ख़ुदा न बन जाए
वो पास हो के दूर है तो दूर हो के पास
मुबहम थे सब नुक़ूश नक़ाबों की धुँद में
हर शय ब हर अंदाज़ अलग होती है
आँखों को देखने का सलीक़ा जब आ गया
रुत बदली तो ज़मीं के चेहरे का ग़ाज़ा भी बदला
वारिस
हिसार-अंदर-हिसार