पहुँच के जो सर-ए-मंज़िल बिछड़ गया मुझ से
वो हम-सफ़र था मगर हम-नज़र न था मेरा
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घुटन अज़ाब-ए-बदन की न मेरी जान में ला
ख़ुद-परस्ती ख़ुदा न बन जाए
हिम्मत वाले पल में बदल देते हैं दुनिया को
फ़ित्ने अजब तरह के समन-ज़ार से उठे
वारिस
न जाने कितनी बस्तियाँ उजड़ के रह गईं
अजल सराए तीरगी
नफ़रत की हवा बन में चलाई किस ने
आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है
कुल आलम-ए-वुजूद कि इक दश्त-ए-नूर था
सच्चा दिया