मिरी शिकस्त भी थी मेरी ज़ात से मंसूब
कि मेरी फ़िक्र का हर फ़ैसला शुऊरी था
Rahat Indori
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Gulzar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(911) Peoples Rate This
यही सोच कर इक्तिफ़ा चार पर कर गए शैख़-जी
नए ख़ौफ़ का आज़ार
ख़ालिक़ और तख़्लीक़
किस नहज से हम ने इक कहानी कह दी
हर शय ब हर अंदाज़ अलग होती है
दिल दबा जाता है कितना आज ग़म के बार से
मिलता नहीं मुझ को नक़्श अपना मुझ में
जाना-पहचाना अजनबी
मुसाफ़िरत का वलवला सियाहतों का मश्ग़ला
ज़िंदान-ए-सुब्ह-ओ-शाम में तू भी है मैं भी हूँ
जिन पे अजल तारी थी उन को ज़िंदा करता है
वारिस