हिम्मत वाले पल में बदल देते हैं दुनिया को
सोचने वाला दिल तो बैठा सोचा करता है
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ये कौन मेरी तिश्नगी बढ़ा बढ़ा के चल दिया
रुत बदली तो ज़मीं के चेहरे का ग़ाज़ा भी बदला
नए ख़ौफ़ का आज़ार
ख़ुद-परस्ती ख़ुदा न बन जाए
दुनिया कभी हो सकी न हमराज़ मिरी
दिल दबा जाता है कितना आज ग़म के बार से
दूर तक बस इक धुँदलका गर्द-ए-तन्हाई का था
नफ़रत की हवा बन में चलाई किस ने
जब सुब्ह की दहलीज़ पे बाज़ार लगेगा
हर्फ़-ए-यक़ीं
यही सोच कर इक्तिफ़ा चार पर कर गए शैख़-जी
सायों से भी डर जाते हैं कैसे कैसे लोग