हर दुकाँ अपनी जगह हैरत-ए-नज़्ज़ारा है
फ़िक्र-ए-इंसाँ के सजाए हुए बाज़ार तो देख
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Anwar Masood
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
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सितम-ज़दा कई बशर क़दम क़दम पे थे
क़ब्र-ए-दर-ओ-दीवार से आगे निकले
ये कौन मेरी तिश्नगी बढ़ा बढ़ा के चल दिया
जाना-पहचाना अजनबी
मुबहम थे सब नुक़ूश नक़ाबों की धुँद में
सच्चा दिया
बुरे भले में फ़र्क़ है ये जानते हैं सब मगर
जिन के नसीब में आब-ओ-दाना कम कम होता है
घुटन अज़ाब-ए-बदन की न मेरी जान में ला
ख़ुद-परस्ती ख़ुदा न बन जाए
दहकते कुछ ख़याल हैं अजीब अजीब से