बे-साल-ओ-सिन ज़मानों में फैले हुए हैं हम
बे-रंग-ओ-नस्ल नाम में तू भी है मैं भी हूँ
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Wasi Shah
Allama Iqbal
Gulzar
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ज़िंदान-ए-सुब्ह-ओ-शाम में तू भी है मैं भी हूँ
सच्चा दिया
दिल दबा जाता है कितना आज ग़म के बार से
दहकते कुछ ख़याल हैं अजीब अजीब से
सायों से भी डर जाते हैं कैसे कैसे लोग
हर्फ़-ए-यक़ीं
मुसाफ़िरत का वलवला सियाहतों का मश्ग़ला
हाँ यही शहर मिरे ख़्वाबों का गहवारा था
सर बस्ता हयात ज़ात गुंजान मिरी
नए ख़ौफ़ का आज़ार
मंजधार में हूँ पास किनारा भी नहीं
आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है