कोई नादीदा उँगली उठ रही है
मिरी जानिब इशारा हो रहा है
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(805) Peoples Rate This
हँसी में साग़र-ए-ज़र्रीं खनक खनक जाए
कई आवाज़ों की आवाज़ हूँ मैं
रात आई है बच्चों को पढ़ाने में लगा हूँ
इक लम्हे ने जीवन-धारा रोक लिया
अभी ज़मीन को हफ़्त आसमाँ बनाना है
देखने को कोई तय्यार नहीं है भाई
नाम 'अकबर' तो मिरा माँ की दुआ ने रक्खा
किसी को अपने सिवा कुछ नज़र नहीं आता
हवा सहला रही है उस के तन को
गई गुज़री कहानी लग रही है
शरार-ए-संग जो इस शोर-ओ-शर से निकलेगा