फ़नकार ब-ज़िद है कि लगाएगा नुमाइश
मैं हूँ कि हर इक ज़ख़्म छुपाने में लगा हूँ
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(766) Peoples Rate This
रात आई है बच्चों को पढ़ाने में लगा हूँ
हवा सहला रही है उस के तन को
नाम 'अकबर' तो मिरा माँ की दुआ ने रक्खा
कई आवाज़ों की आवाज़ हूँ मैं
तिरा आँचल इशारे दे रहा है
हू-ब-हू आप ही की मूरत है
मुझे लिक्खो वहाँ क्या हो रहा है
हँसी में साग़र-ए-ज़र्रीं खनक खनक जाए
तमाम आलम-ए-इम्काँ मिरे गुमान में है
इक लम्हे ने जीवन-धारा रोक लिया
देखने को कोई तय्यार नहीं है भाई