शरार-ए-संग जो इस शोर-ओ-शर से निकलेगा
शरार-ए-संग जो इस शोर-ओ-शर से निकलेगा
जलूस-ए-लाला-ओ-नस्रीं किधर से निकलेगा
मैं जानता हूँ कि उस की ख़बर न आएगी
तनाज़ुर उस का मगर हर ख़बर से निकलेगा
सभी असीर हुए अपनी अपनी सुब्हों के
वो कोई होगा जो क़ैद-ए-सहर से निकलेगा
किसी को अपने सिवा कुछ नज़र नहीं आता
जो दीदा-वर है तिलिस्म-ए-नज़र से निकलेगा
जलाल-ए-हुस्न दिखा मेरे माहताब-ए-जमाल
तू रौशनी है शबों के असर से निकलेगा
शबों को जागते हो जिस के ख़्वाब में 'अकबर'
वो शाहकार कमाल-ए-हुनर से निकलेगा
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