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कई आवाज़ों की आवाज़ हूँ मैं - अकबर हमीदी कविता - Darsaal

कई आवाज़ों की आवाज़ हूँ मैं

कई आवाज़ों की आवाज़ हूँ मैं

ग़ज़ल के वास्ते एज़ाज़ हूँ मैं

कई हर्फ़ों से मिल कर बन रहा हूँ

बजाए लफ़्ज़ के अल्फ़ाज़ हूँ मैं

मिरी आवाज़ में सूरत है मेरी

कि अपने साज़ की आवाज़ हूँ मैं

बहुत फ़ितरी था तेरा हर्फ़-ए-इंकार

तिरा ग़म-ख़्वार हूँ दम-साज़ हूँ मैं

कहीं तो हर्फ़-ए-आख़िर हूँ मैं 'अकबर'

किसी का नुक़्ता-ए-आग़ाज़ हूँ मैं

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