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कहा था उस ने मोहब्बत की आबरू रखना - अकबर हमीदी कविता - Darsaal

कहा था उस ने मोहब्बत की आबरू रखना

कहा था उस ने मोहब्बत की आबरू रखना

चुभे हों कितने भी काँटे गुलों की ख़ू रखना

दिलों को तोड़ न डाले तुम्हारी हक़-गोई

बजाए हर्फ़ के आईना रू-ब-रू रखना

जो वक़्त अहल-ए-वफ़ा से कभी लहू माँगे

तो सब से पहले लब-ए-तेग़ पर गुलू रखना

ख़िज़ाँ से हार न जाना किसी भी हालत में

नुमू मिले न मिले ख़्वाहिश-ए-नुमू रखना

बुरा न कहना ज़माने को हम ज़माना हैं

हमारे ब'अद ज़माने से गुफ़्तुगू रखना

फ़क़ीह-ए-शहर के फ़तवे की हैसियत क्या है

तो ख़ुद को अपनी निगाहों में सुर्ख़-रू रखना

विसाल-ए-दोस्त की साअत भी आने वाली है

सहर क़रीब है 'अकबर' अभी वज़ू रखना

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