मौत उस बेकस की ग़ायत ही सही

मौत उस बेकस की ग़ायत ही सही

उम्र भर जिस ने मुसीबत ही सही

हुस्न का अंजाम देखें अहल-ए-हुस्न

इश्क़ मेरा बे-हक़ीक़त ही सही

ज़िंदगी है चश्म-ए-इबरत में अभी

कुछ नहीं तो ऐश-ओ-इशरत ही सही

देख लेता हूँ तबस्सुम हुस्न का

ग़म-परस्ती मेरी फ़ितरत ही सही

पर्दा-दार-ए-सादगी है हर अदा

ये तसन्नो बे-ज़रूरत ही सही

दरपय-ए-आज़ार है क़िस्मत तो हो

अब मुझे तुम से मोहब्बत ही सही

हूर-ए-बे-जा की तलाफ़ी कुछ तो कर

ख़ैर इज़हार-ए-नदामत ही सही

ऐ अजल कुछ ज़िंदगी का हक़ भी है

ज़िंदगी तेरी अमानत ही सही

क्या करूँ 'अकबर' दिली जज़्बात को

इस तग़ज़्ज़ुल में क़दामत ही सही

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