क्या कहूँ जज़्बात का तूफ़ान कितना तेज़ है

क्या कहूँ जज़्बात का तूफ़ान कितना तेज़ है

दिल ब-हद्द-ए-बे-ख़ुदी एहसास से लबरेज़ है

इश्क़ की दुनिया में हर तकलीफ़ राहत-ख़ेज़ है

इज़्तिराब-ए-दिल भी इक हद तक सुकूँ-आमेज़ है

दीदनी है अब शिकस्त-ए-ज़ब्त की बे-चारगी

मुस्कुराता हूँ मगर दिल दर्द से लबरेज़ है

दिल निगाह-ए-नाज़ के उठने से पहले उठ गया

मेरे एहसासात की रफ़्तार कितनी तेज़ है

आँख में आँसू जिगर में दर्द दिल में इज़्तिराब

आह ज़ब्त-ए-आह भी कितना तलातुम-ख़ेज़ है

इश्क़ की सादा-दिली है हर तरफ़ छाई हुई

बारगाह-ए-हुस्न में हर आरज़ू नौ-ख़ेज़ है

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