Islamic Poetry of Akbar Allahabadi
नाम | अकबर इलाहाबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Akbar Allahabadi |
जन्म की तारीख | 1846 |
मौत की तिथि | 1921 |
जन्म स्थान | Allahabad |
तय्यार थे नमाज़ पे हम सुन के ज़िक्र-ए-हूर
सिधारें शैख़ काबा को हम इंग्लिस्तान देखेंगे
सब हो चुके हैं उस बुत-ए-काफ़िर-अदा के साथ
रक़ीबों ने रपट लिखवाई है जा जा के थाने में
रहता है इबादत में हमें मौत का खटका
ख़ुदा से माँग जो कुछ माँगना है ऐ 'अकबर'
जब मैं कहता हूँ कि या अल्लाह मेरा हाल देख
हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से
फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं
बुतों के पहले बंदे थे मिसों के अब हुए ख़ादिम
बुत-कदे में शोर है 'अकबर' मुसलमाँ हो गया
अक़्ल में जो घिर गया ला-इंतिहा क्यूँकर हुआ
अब तो है इश्क़-ए-बुताँ में ज़िंदगानी का मज़ा
मदरसा अलीगढ़
फ़र्ज़ी लतीफ़ा
बर्क़-ए-कलीसा
ज़िद है उन्हें पूरा मिरा अरमाँ न करेंगे
ये सुस्त है तो फिर क्या वो तेज़ है तो फिर क्या
उन्हें निगाह है अपने जमाल ही की तरफ़
साँस लेते हुए भी डरता हूँ
सदियों फ़िलासफ़ी की चुनाँ और चुनीं रही
रंग-ए-शराब से मिरी निय्यत बदल गई
न रूह-ए-मज़हब न क़ल्ब-ए-आरिफ़ न शाइराना ज़बान बाक़ी
न बहते अश्क तो तासीर में सिवा होते
मज़हब का हो क्यूँकर इल्म-ओ-अमल दिल ही नहीं भाई एक तरफ़
क्या जानिए सय्यद थे हक़ आगाह कहाँ तक
ख़ुशी है सब को कि ऑपरेशन में ख़ूब निश्तर ये चल रहा है
ख़ुदा अलीगढ़ की मदरसे को तमाम अमराज़ से शिफ़ा दे
कहाँ वो अब लुत्फ़-ए-बाहमी है मोहब्बतों में बहुत कमी है
जो तुम्हारे लब-ए-जाँ-बख़्श का शैदा होगा