Hope Poetry of Akbar Allahabadi
नाम | अकबर इलाहाबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Akbar Allahabadi |
जन्म की तारीख | 1846 |
मौत की तिथि | 1921 |
जन्म स्थान | Allahabad |
क्या वो ख़्वाहिश कि जिसे दिल भी समझता हो हक़ीर
जवानी की दुआ लड़कों को ना-हक़ लोग देते हैं
जान शायद फ़रिश्ते छोड़ भी दें
मिस सीमीं बदन
मदरसा अलीगढ़
फ़र्ज़ी लतीफ़ा
दरबार1911
बर्क़-ए-कलीसा
यूँ मिरी तब्अ से होते हैं मआनी पैदा
उम्मीद टूटी हुई है मेरी जो दिल मिरा था वो मर चुका है
रंग-ए-शराब से मिरी निय्यत बदल गई
फिर गई आप की दो दिन में तबीअ'त कैसी
नई तहज़ीब से साक़ी ने ऐसी गर्म-जोशी की
न रूह-ए-मज़हब न क़ल्ब-ए-आरिफ़ न शाइराना ज़बान बाक़ी
लुत्फ़ चाहो इक बुत-ए-नौ-ख़ेज़ को राज़ी करो
ख़ुशी क्या हो जो मेरी बात वो बुत मान जाता है
ख़ुदा अलीगढ़ की मदरसे को तमाम अमराज़ से शिफ़ा दे
ख़त्म किया सबा ने रक़्स गुल पे निसार हो चुकी
जो तुम्हारे लब-ए-जाँ-बख़्श का शैदा होगा
जल्वा अयाँ है क़ुदरत-ए-परवरदिगार का
जहाँ में हाल मिरा इस क़दर ज़बून हुआ
जब यास हुई तो आहों ने सीने से निकलना छोड़ दिया
इश्क़-ए-बुत में कुफ़्र का मुझ को अदब करना पड़ा
हर इक ये कहता है अब कार-ए-दीं तो कुछ भी नहीं
गले लगाएँ करें प्यार तुम को ईद के दिन
फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं
दश्त-ए-ग़ुर्बत है अलालत भी है तन्हाई भी
चर्ख़ से कुछ उमीद थी ही नहीं
बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी
आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते