रुस्वा वो हुआ जो मस्त पैमाना हुआ
लपका जो साया पर वो दीवाना हुआ
इंग्लैण्ड से अपना दिल जो लाया न दुरुस्त
महरूम उधर इधर से बेगाना हुआ
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उन्हें निगाह है अपने जमाल ही की तरफ़
उम्मीद टूटी हुई है मेरी जो दिल मिरा था वो मर चुका है
दिल-ए-मायूस में वो शोरिशें बरपा नहीं होतीं
नई तहज़ीब
इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं
ज़िद है उन्हें पूरा मिरा अरमाँ न करेंगे
मेरे हवास इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर
असर ये तेरे अन्फ़ास-ए-मसीहाई का है 'अकबर'
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
मेहरबानी है अयादत को जो आते हैं मगर
लोग कहते हैं कि बद-नामी से बचना चाहिए
अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके