हर एक को नौकरी नहीं मिलने की
हर बाग़ में ये कली नहीं खिलने की
कुछ पढ़ के तू सनअत-ओ-ज़राअत को देख
इज़्ज़त के लिए काफ़ी है ऐ दिल नेकी
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Jaun Eliya
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Faiz Ahmad Faiz
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लुत्फ़ चाहो इक बुत-ए-नौ-ख़ेज़ को राज़ी करो
तदबीर करें तो इस में नाकामी हो
दश्त-ए-ग़ुर्बत है अलालत भी है तन्हाई भी
फिर गई आप की दो दिन में तबीअ'त कैसी
ये दिलबरी ये नाज़ ये अंदाज़ ये जमाल
फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं
मिल गया शरअ से शराब का रंग
बोले कि तुझ को दीन की इस्लाह फ़र्ज़ है
दुख़्तर-ए-रज़ ने उठा रक्खी है आफ़त सर पर
जल्वा न हो मअ'नी का तो सूरत का असर क्या
ग़ज़ब है वो ज़िद्दी बड़े हो गए
मज़हब का हो क्यूँकर इल्म-ओ-अमल दिल ही नहीं भाई एक तरफ़