बे-पर्दा नज़र आईं जो कल चंद बीबियाँ
'अकबर' ज़मीं में ग़ैरत-ए-क़ौमी से गड़ गया
पूछा जो मैं ने आप का पर्दा वो क्या हुआ
कहने लगीं कि अक़्ल पे मर्दों के पड़ गया
Gulzar
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Habib Jalib
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(18374) Peoples Rate This
मेरे हवास इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर
हर चंद बगूला मुज़्तर है इक जोश तो उस के अंदर है
दुनिया से मेल की ज़रूरत ही नहीं
रक़ीबों ने रपट लिखवाई है जा जा के थाने में
समझ में साफ़ आ जाए फ़साहत इस को कहते हैं
क्या पूछते हो 'अकबर'-ए-शोरीदा-सर का हाल
शैख़ अपनी रग को क्या करें रेशे को क्या करें
नई तहज़ीब से साक़ी ने ऐसी गर्म-जोशी की
धमका के बोसे लूँगा रुख़-ए-रश्क-ए-माह का
आम-नामा
दश्त-ए-ग़ुर्बत है अलालत भी है तन्हाई भी
वज़्न अब उन का मुअ'य्यन नहीं हो सकता कुछ