ये दिलबरी ये नाज़ ये अंदाज़ ये जमाल
इंसाँ करे अगर न तिरी चाह क्या करे
Habib Jalib
Anwar Masood
Parveen Shakir
Gulzar
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1898) Peoples Rate This
रक़ीबों ने रपट लिखवाई है जा जा के थाने में
एक काफ़िर पर तबीअत आ गई
क्या वो ख़्वाहिश कि जिसे दिल भी समझता हो हक़ीर
मेरे हवास-ए-इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर
इश्क़-ए-बुत में कुफ़्र का मुझ को अदब करना पड़ा
नई तहज़ीब से साक़ी ने ऐसी गर्म-जोशी की
इक बर्ग-ए-मुज़्महिल ने ये स्पीच में कहा
ज़िद है उन्हें पूरा मिरा अरमाँ न करेंगे
हर एक को नौकरी नहीं मिलने की
लीडरों की धूम है और फॉलोवर कोई नहीं
मेरी तक़दीर मुआफ़िक़ न थी तदबीर के साथ
उन्हें निगाह है अपने जमाल ही की तरफ़