तिफ़्ल में बू आए क्या माँ बाप के अतवार की
दूध तो डिब्बे का है तालीम है सरकार की
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जल्वा न हो मअ'नी का तो सूरत का असर क्या
डाल दे जान मआ'नी में वो उर्दू ये है
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
धमका के बोसे लूँगा रुख़-ए-रश्क-ए-माह का
हर एक को नौकरी नहीं मिलने की
शैख़ की दावत में मय का काम क्या
कहाँ वो अब लुत्फ़-ए-बाहमी है मोहब्बतों में बहुत कमी है
जो तुम्हारे लब-ए-जाँ-बख़्श का शैदा होगा
रहता है इबादत में हमें मौत का खटका
नई तहज़ीब से साक़ी ने ऐसी गर्म-जोशी की
दर्द तो मौजूद है दिल में दवा हो या न हो
वो हवा न रही वो चमन न रहा वो गली न रही वो हसीं न रहे