रहता है इबादत में हमें मौत का खटका
हम याद-ए-ख़ुदा करते हैं कर ले न ख़ुदा याद
Parveen Shakir
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Allama Iqbal
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Gulzar
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Anwar Masood
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इस क़दर था खटमलों का चारपाई में हुजूम
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
लीडरों की धूम है और फॉलोवर कोई नहीं
मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं
नौकरों पर जो गुज़रती है मुझे मालूम है
बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी
क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
ज़रूरी चीज़ है इक तजरबा भी ज़िंदगानी में
हर एक को नौकरी नहीं मिलने की
मेरी ये बेचैनियाँ और उन का कहना नाज़ से
जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर
ग़म-ख़ाना-ए-जहाँ में वक़अत ही क्या हमारी