पब्लिक में ज़रा हाथ मिला लीजिए मुझ से
साहब मिरे ईमान की क़ीमत है तो ये है
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बूट दासन ने बनाया मैं ने इक मज़मून लिखा
दश्त-ए-ग़ुर्बत है अलालत भी है तन्हाई भी
तकमील में उन उलूम के हो मसरूफ़
एक काफ़िर पर तबीअत आ गई
तुम नाक चढ़ाते हो मिरी बात पे ऐ शैख़
जवानी की है आमद शर्म से झुक सकती हैं आँखें
फिर गई आप की दो दिन में तबीअ'त कैसी
कोट और पतलून जब पहना तो मिस्टर बन गया
बताऊँ आप को मरने के बाद क्या होगा
पड़ जाएँ मिरे जिस्म पे लाख आबले 'अकबर'
कुछ तर्ज़-ए-सितम भी है कुछ अंदाज़-ए-वफ़ा भी