मेरे हवास इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर
मजनूँ का नाम हो गया क़िस्मत की बात है
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मिस सीमीं बदन
जान शायद फ़रिश्ते छोड़ भी दें
हक़ीक़ी और मजाज़ी शायरी में फ़र्क़ ये पाया
बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी
बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है
इल्म ओ हिकमत में हो अगर ख़्वाहिश-ए-फ़ेम
तुम्हारे वाज़ में तासीर तो है हज़रत-ए-वाइज़
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
तिफ़्ल में बू आए क्या माँ बाप के अतवार की
आज आराइ-ए-शगेसू-ए-दोता होती है
हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
पब्लिक में ज़रा हाथ मिला लीजिए मुझ से