मिरा मोहताज होना तो मिरी हालत से ज़ाहिर है
मगर हाँ देखना है आप का हाजत-रवा होना
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ख़त्म किया सबा ने रक़्स गुल पे निसार हो चुकी
ये है कि झुकाता है मुख़ालिफ़ की भी गर्दन
सौ जान से हो जाऊँगा राज़ी मैं सज़ा पर
धमका के बोसे लूँगा रुख़-ए-रश्क-ए-माह का
दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त
मरऊब हो गए हैं विलायत से शैख़-जी
आह जो दिल से निकाली जाएगी
भूलता जाता है यूरोप आसमानी बाप को
ज़िद है उन्हें पूरा मिरा अरमाँ न करेंगे
उन्हें निगाह है अपने जमाल ही की तरफ़
लोग कहते हैं कि बद-नामी से बचना चाहिए
नई तहज़ीब से साक़ी ने ऐसी गर्म-जोशी की