मरऊब हो गए हैं विलायत से शैख़-जी
अब सिर्फ़ मनअ करते हैं देसी शराब को
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1232) Peoples Rate This
लगावट की अदा से उन का कहना पान हाज़िर है
अकबर दबे नहीं किसी सुल्ताँ की फ़ौज से
मेरे हवास इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
ख़ुदा अलीगढ़ की मदरसे को तमाम अमराज़ से शिफ़ा दे
इक बर्ग-ए-मुज़्महिल ने ये स्पीच में कहा
क्या ही रह रह के तबीअ'त मिरी घबराती है
दरबार1911
नई तहज़ीब
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
तिफ़्ल में बू आए क्या माँ बाप के अतवार की
जो वक़्त-ए-ख़त्ना मैं चीख़ा तो नाई ने कहा हँस कर