कुछ इलाहाबाद में सामाँ नहीं बहबूद के
याँ धरा क्या है ब-जुज़ अकबर के और अमरूद के
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क्या ही रह रह के तबीअ'त मिरी घबराती है
मिस सीमीं बदन
लगावट की अदा से उन का कहना पान हाज़िर है
पड़ जाएँ मिरे जिस्म पे लाख आबले 'अकबर'
पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
पूछा 'अकबर' है आदमी कैसा
मेरे हवास-ए-इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए
हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना