खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो
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हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
हल्क़े नहीं हैं ज़ुल्फ़ के हल्क़े हैं जाल के
हर एक को नौकरी नहीं मिलने की
फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं
क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
लीडरों की धूम है और फॉलोवर कोई नहीं
यूँ मिरी तब्अ से होते हैं मआनी पैदा
ख़ुशी क्या हो जो मेरी बात वो बुत मान जाता है
हक़ीक़ी और मजाज़ी शायरी में फ़र्क़ ये पाया
न रूह-ए-मज़हब न क़ल्ब-ए-आरिफ़ न शाइराना ज़बान बाक़ी
आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
जो तुम्हारे लब-ए-जाँ-बख़्श का शैदा होगा