डाल दे जान मआ'नी में वो उर्दू ये है
करवटें लेने लगे तब्अ वो पहलू ये है
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आह जो दिल से निकाली जाएगी
ये है कि झुकाता है मुख़ालिफ़ की भी गर्दन
ख़िलाफ़-ए-शरअ कभी शैख़ थूकता भी नहीं
मेरी तक़दीर मुआफ़िक़ न थी तदबीर के साथ
हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से
फिर गई आप की दो दिन में तबीअ'त कैसी
जहाँ में हाल मिरा इस क़दर ज़बून हुआ
एक काफ़िर पर तबीअत आ गई
जवानी की है आमद शर्म से झुक सकती हैं आँखें
दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त
मेरे हवास इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर
वो लुत्फ़ अब हिन्दू मुसलमाँ में कहाँ